Sunday, July 28, 2013
Baglamukhi Temple in Datia Madhya Pradesh India also Known as Pitambara Shakti Peeth
बगलामुखी महामंत्रम
!!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं
स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!
बगलमुखी की पूजा पीतांबरा विध्या के रूप में प्रसिध्द् हैं|(इनकी पूजा में प्रमुखता से पीले रंग का उपयोग किया जाता है)|इनकी पूजा से शत्रुओं से रक्षा तथा उन्हें परास्त करने,कोर्ट केश मे विजयी दिलाने,धनार्जन,ऋण से मुक्ति तथा वाक्-चातुर्य की शक्ति का प्राप्ति होता है|
स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!
बगलमुखी की पूजा पीतांबरा विध्या के रूप में प्रसिध्द् हैं|(इनकी पूजा में प्रमुखता से पीले रंग का उपयोग किया जाता है)|इनकी पूजा से शत्रुओं से रक्षा तथा उन्हें परास्त करने,कोर्ट केश मे विजयी दिलाने,धनार्जन,ऋण से मुक्ति तथा वाक्-चातुर्य की शक्ति का प्राप्ति होता है|
इनकी पूजा
पीले वस्त्र,हल्दी से बने माला,पीले आसन और पीले पुष्प का उपयोग किया जाता
है|यह पीठासीन देवी हैं जो अपनी दिव्य शक्तिओं से असुरों को विनाश करतीं
हैं|उनका निवास अमृत की सागर के मध्य है,जहॉ उनके निवास स्थान को हीरों से
सजाया गया है तथा उनका सिंहासन् गहनों से जड़ित है|
उनके आकृति से
स्वर्ण आभा आती है|वह पीले परिधान,स्वर्ण आभूषण तथा पीला माला धारण करतीं
हैं|उनके वाएँ हाथ मे शत्रु के जीभ और दाहिने हाथ मे गदा है|इनकी उत्पत्ति
के बारे मे एक कहानी का वर्णन किया गया है|सतयुग मे एक् बार पूरी सृष्टि
भयानक चक्रवात मे फँसी थी,तब भगवान विष्णु संपूर्ण मानव जगत के सुरक्षा
हेतु सॉराष्ट् मे स्थित हरिद्रा सरोवर के पास देवी भगवती को प्रसन्न करने
के लिए तपस्या करने लगें|
श्रीविधा उनके
सम्मुख हरिद्रा सरोवर के जल से स्वर्ण आभा लिए प्रकट हुई|उन्होनें सृष्टि
विनाशक तूफान को नियंत्रित कीं तथा सृष्टि को बर्वाद होने से बचाई|
देवी बगलामुखी
प्रकृति में अतिचार करने वाली बुरी शक्तियों को नियंत्रित करने मे सहायता
करती हैं|वह हमारी वाक् ज्ञान और गति को नियंत्रित करने मे मदद करती हैं|वह
अपने भक्तों को शक्ति और सिद्दि देती हैं तथा सभी ईच्छाओं की पूर्ति करती
हैं,जैसा-कि उन्होने अपने भक्त 'कल्पतरू' को दिए|
!!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं
स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!
स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!
बगलामुखी महामंत्र का अर्थ इस प्रकार हैं-
हे देवी मेरे सारे दुश्मनों को बेवस और लाचार कीजिए.उनके बुध्दि और गति को नष्ट कीजिए.
माँ बगलामुखी की उत्पत्ति
देवी बगलामुखी की
उत्पत्ति के बारे में प्रचलित कथा का वर्णन- सतयुग की बात है, ब्रह्मांड
में एक भयंकर तूफान आने पर पूरी सृष्टि नष्ट होने के कगार पर आ गया. तब
भगवान विष्णु नें सर्वशक्तिमान और देवी बगलामुखी का आह्वान किया. उन्होने
सौराष्ट (काठियावर) के हरिद्रा सरोवर के पास उपासना किए. उनके इस तप से
श्रीविध्या का तेज उत्पन्न हुआ. तप की उस रात्रि क़ो बीर रात्रि के रूप
में जाना जाता है. तप का वह दिन चतुरदर्शी मंगलवार था.माँ बगलामुखी उस
सरोवर में निवास की जिसके जल का रंग हल्दी समान पीलापन लिए हुए था. उस
अर्ध रात्रि को भगवान विष्णु की तपस्या से संतुष्ट होकर माँ बगलामुखी ने
सृष्टिविनाशक तूफान क़ो शान्त किए,
तांत्रिक इनकी अराधना पंच मकार का सेवन करके करतें हैं. श्रीविध्या के प्रकाश से द्वितीय त्रिलोक स्तम्भनि ब्रह्मस्त्र विध्या प्रकट हुआ. शक्ति जो ब्रह्मस्त्र विध्या से उत्पन्न हुआ वह भगवान विष्णु के शक्ति मे विलीन हो गया.
एक मदन नाम का राक्षस काफी कठिन तपस्या करके वाक् सिद्धि के वरदान को पाया था. उसने इस वरदान का गलत इस्तेमाल करना शुरू किया और निर्दोष लाचार लोगों को परेशान करने लगा. उसके इस घृणित कार्य से परेशान होकर देवताओं ने माँ बगलामुखी का अराधना किए. माँ ने असुर के हिंसात्मक आचरण को
अपने वाएं हाथ से उसके जीभ को पकर कर और उसके वाणी को स्थिर कर रोक दिए.माँ बगलामुखी जैसे-ही मारने के लिए दाहिने हाथ में गदा उठाई असुर के मुख से निकाला मैं इसी रूप में आपके साथ दर्शाया जाएँ. तब से देवी बगलामुखी के साथ दर्शाया गया है.
तांत्रिक इनकी अराधना पंच मकार का सेवन करके करतें हैं. श्रीविध्या के प्रकाश से द्वितीय त्रिलोक स्तम्भनि ब्रह्मस्त्र विध्या प्रकट हुआ. शक्ति जो ब्रह्मस्त्र विध्या से उत्पन्न हुआ वह भगवान विष्णु के शक्ति मे विलीन हो गया.
एक मदन नाम का राक्षस काफी कठिन तपस्या करके वाक् सिद्धि के वरदान को पाया था. उसने इस वरदान का गलत इस्तेमाल करना शुरू किया और निर्दोष लाचार लोगों को परेशान करने लगा. उसके इस घृणित कार्य से परेशान होकर देवताओं ने माँ बगलामुखी का अराधना किए. माँ ने असुर के हिंसात्मक आचरण को
अपने वाएं हाथ से उसके जीभ को पकर कर और उसके वाणी को स्थिर कर रोक दिए.माँ बगलामुखी जैसे-ही मारने के लिए दाहिने हाथ में गदा उठाई असुर के मुख से निकाला मैं इसी रूप में आपके साथ दर्शाया जाएँ. तब से देवी बगलामुखी के साथ दर्शाया गया है.
Legend
Once upon a time, a huge storm erupted over the Earth. As it threatened to destroy whole of the creation, all the gods assembled in the Saurashtra region. Goddess Bagalamukhi emerged from the 'Haridra Sarovara', and appeased by the prayers of the gods, calmed down the storm. You can see replica of 'Haridra Sarovara', as described in scriptures, at Peetambara Peetham, Datia, Madhya Pradesh, India.
Origin
माँ बगलामुखी की उत्पत्ति
देवी बगलामुखी की
उत्पत्ति के बारे में प्रचलित कथा का वर्णन- सतयुग की बात है, ब्रह्मांड
में एक भयंकर तूफान आने पर पूरी सृष्टि नष्ट होने के कगार पर आ गया. तब
भगवान विष्णु नें सर्वशक्तिमान और देवी बगलामुखी का आह्वान किया. उन्होने
सौराष्ट (काठियावर) के हरिद्रा सरोवर के पास उपासना किए. उनके इस तप से
श्रीविध्या का तेज उत्पन्न हुआ. तप की उस रात्रि क़ो बीर रात्रि के रूप
में जाना जाता है. तप का वह दिन चतुरदर्शी मंगलवार था.माँ बगलामुखी उस
सरोवर में निवास की जिसके जल का रंग हल्दी समान पीलापन लिए हुए था. उस
अर्ध रात्रि को भगवान विष्णु की तपस्या से संतुष्ट होकर माँ बगलामुखी ने
सृष्टिविनाशक तूफान क़ो शान्त किए,
तांत्रिक इनकी अराधना पंच मकार का सेवन करके करतें हैं. श्रीविध्या के प्रकाश से द्वितीय त्रिलोक स्तम्भनि ब्रह्मस्त्र विध्या प्रकट हुआ. शक्ति जो ब्रह्मस्त्र विध्या से उत्पन्न हुआ वह भगवान विष्णु के शक्ति मे विलीन हो गया.
एक मदन नाम का राक्षस काफी कठिन तपस्या करके वाक् सिद्धि के वरदान को पाया था. उसने इस वरदान का गलत इस्तेमाल करना शुरू किया और निर्दोष लाचार लोगों को परेशान करने लगा. उसके इस घृणित कार्य से परेशान होकर देवताओं ने माँ बगलामुखी का अराधना किए. माँ ने असुर के हिंसात्मक आचरण को
अपने वाएं हाथ से उसके जीभ को पकर कर और उसके वाणी को स्थिर कर रोक दिए.माँ बगलामुखी जैसे-ही मारने के लिए दाहिने हाथ में गदा उठाई असुर के मुख से निकाला मैं इसी रूप में आपके साथ दर्शाया जाएँ. तब से देवी बगलामुखी के साथ दर्शाया गया है.
तांत्रिक इनकी अराधना पंच मकार का सेवन करके करतें हैं. श्रीविध्या के प्रकाश से द्वितीय त्रिलोक स्तम्भनि ब्रह्मस्त्र विध्या प्रकट हुआ. शक्ति जो ब्रह्मस्त्र विध्या से उत्पन्न हुआ वह भगवान विष्णु के शक्ति मे विलीन हो गया.
एक मदन नाम का राक्षस काफी कठिन तपस्या करके वाक् सिद्धि के वरदान को पाया था. उसने इस वरदान का गलत इस्तेमाल करना शुरू किया और निर्दोष लाचार लोगों को परेशान करने लगा. उसके इस घृणित कार्य से परेशान होकर देवताओं ने माँ बगलामुखी का अराधना किए. माँ ने असुर के हिंसात्मक आचरण को
अपने वाएं हाथ से उसके जीभ को पकर कर और उसके वाणी को स्थिर कर रोक दिए.माँ बगलामुखी जैसे-ही मारने के लिए दाहिने हाथ में गदा उठाई असुर के मुख से निकाला मैं इसी रूप में आपके साथ दर्शाया जाएँ. तब से देवी बगलामुखी के साथ दर्शाया गया है.
Baglamukhi Devi Or Maa Pitambara Devi.
Bagalamukhi or Bagala is one of the ten mahavidyas (great wisdom goddesses) in Hinduism.
Bagalamukhi Devi smashes the devotee's misconceptions and delusions (or the devotee's enemies) with her cudgel .
She is also known as Pitambara Maa in Northern Parts of India
Bagalamukhi Devi smashes the devotee's misconceptions and delusions (or the devotee's enemies) with her cudgel .
She is also known as Pitambara Maa in Northern Parts of India
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